'' काम स्त्री का हो या पुरुष का महत्व जरुरी ''
हमारा समाज '' पितृसत्तात्मक '' होने के कारण '' महिला '' घर में ही कैद होकर रह गई हैं, पर हमारे '' धर्म '' के त्यौहार ,व्रत , उपवास , और उत्सव '' हैं , जिन्हे घर से बाहार हैं मनाकर वे अपने आप को कुछ देर उन सभी '' नित्यकर्मों '' से जो वो हमेशा अपने घर और उनके लिए करती हैं ,जिनसे वो '' सरोकार '' रखती हैं।
ये '' व्रत ,उपवास ,उत्सव ,और त्यौहार '' मना कर वो उस '' पितृसत्तात्मक '' लोगों को भी खुश और प्रसन्न रखती हैं और खुद भी बाहार खुले में सांस लेती हैं।
इन '' व्रत ,उपवास से पुरुष समाज भी खुश '' होता हैं ,कि ये सब उनके लिए ही हैं। इन व्रतो ,उपवास में भी महिला अपने लिए नहीं ,कभी पति व कभी घर की '' सुख -समृद्धि '' की कामना करती हैं।
' ' आदमी और औरत '' सबका हमेशा '' जी '' ललचाता हैं कि हमारे '' पर्व ,त्यौहार और उत्सव '' उसी पुरानी '' परम्परा और आनंद '' व '' ढाढ '' के साथ हमेशा मनाये जाये , जैसे हमारी '' माँ ,दादी , नानी , '' हमेशा मनाया करती थी।
उन त्योहारों को मनाने की सारी '' जिम्मेदारी ''भी उसी '' महिला '' पर होती हैं। वो उस कार्य को उसी ढंग से न करे, जिस ढंग से परम्परा हैं , उसी '' उल्लास '' के साथ न मनाये तो उसे '' लापरवाह औरत '' का '' तमगा '' दे दिया जाता हैं।
उस '' त्यौहार , व्रत ,उपवास '' को मनाने के लिए उस महिला का सारा समय रसोई घर में '' मशक्क़त '' के साथ गुजर जाता हैं कि '' परम्परा '' को कैसे बनाये रखना हैं।
'' रंगोली ,दिया ,पूजा ,भजन ,कीर्तन ,, मेहमान ''सभी उसी की जिम्मेदारी हैं।
ये कौन सोचेगा की '' महिला '' को भी '' free '' रहकर बातें करना , '' हँसी मजाक '' करना अच्छा लग सकता हैं।
घर में कोई सा भी कार्य हो लोगो को '' भाभी जी ''' के हाथ का बना '' भोजन '' हमेशा याद आता हैं और पति भी बड़े '' चाव '' से कह देते हैं , हाँ ,हाँ जरूर क्यों नहीं?
कोई कहता हैं कि मेरी '' पत्नी '' बहुत अच्छा भोजन बनाती हैं ,कोई कहता हैं मेरी '' बहू '' , कोई कहता हैं मेरी '' माँ '' ,कोई कहता हैं मेरी '' भाभी '' , कोई कहता हैं मेरी '' बहन ''
ये सब में महिला हमेशा ही '' जीवनभर पीसी '' जाती हैं।
'' मुस्कुराकर '':-
'' स्त्री '' का काम जीवनभर खत्म नहीं होता और ये कार्य उसे हमेशा '' मुस्कुराकर '' करना अपनी जिम्मेदारी मान कर करना हैं ,उससे वो '' मुँह नहीं मोड़ '' सकती।
उन चार '' दीवारी के अंदर '' ही वो '' अपनी दुनियाँ '' बना लेती हैं और उसमे ही खुश रहती है व शिकायत भी नहीं करती वहाँ कभी कोई परेशानी होती है तो थोड़ा '' गुस्सा या नाराजगी '' जाता देती है पर कुछ समय बाद वही सारे कार्यो में जुट जाती है उसे पता है की उसे ये सब कार्य करने ही है तो वह उसी में अपनी '' ख़ुशी ढूंढ '' लेती है और सब में खुश रहती है।
तो आप सब हमेशा '' खुश रहे स्वस्थ '' रहे
और अपने आस -पास जितनी भी '' महिला ,स्त्री '' है ,उनके '' काम '' का सम्मान करे और उनको भी पूरा '' मान -सम्मान '' दे।
घर का काम भी एक ''' मोती तन्खा '' से काम नहीं।
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