''रोजगार के अवसर खोती महिलाएँ ''
'' बेरोजगारी की मार से जूझती महिलाएँ '' :-
जैसा की हमने पहले के अंक में बात की '' महामारी के दौर से गुजरती महिलाएँ '' उसी में आज के अंक में आगे की बात। .........
कहीं दशकों से औरतों को पुरुषों के समानता की स्थति में लाने के '' अनगिनत '' प्रयास और कोशिश की गई हैं ,और कहि हद तक उन कोशिशों को अपना '' मुकाम '' भी मिल रहा था ,पर अभी इस वर्तमान समय ने उन सभी मुकामों को '' मिटाने या खोने '' का अंधेशा बड़ा दिया हैं।
उन सभी प्रयासों के नाकाम होने के आसार लग रहे हैं।
पूरे विश्व में '' लकडाउन '' ने न जाने कितनी '' जिंदगियों '' को निगला हैं और न जाने कितनी '' जिंदगियों '' को '' बेसहारा '' '' बेरोज़गार '' बना दिया हैं।
कई जिंदगियों को बचाने में , कई जिंदगियों की '' क़ीमत '' अदा करनी पढ़ी हैं।
इन सभी में '' महिलाओं '' का भी बहुत योगदान रहा हैं , वे हर तरह से अपने आप को इस माहौल में भी संभाले हुए ,अपना और अपने '' परिवार '' का '' भरण - पोषण '' कर रहीं हैं।
न जानें कहाँ से महिलाओं में इतनी '' हिम्मत , ताकत और शक्ति '' आती हैं, कि वो हर
'' परिस्थिति , मुसीबत '' का इतनी सहजता से मुक़ाबला ,धैर्यता के साथ कर लेती हैं, और शिकायत भी नहीं करती।
इस वर्तमान समय में '' COVID - 19 '' की वजह से करीब भारत की आधी आबादी जो '' महिला '' हैं। उन्हें अपने '' सपनें और आय दोनों को खो '' कर बेहद गरीब होने की आशंका हैं,और ये गरीबी की खाई आने वाले समय में अभी और बड़ सकती हैं।
इस सवाल पर सभी चुप है?
कोई इसके लिए कुछ नहीं करता न ही कुछ '' ज़िम्मेदारी '' लेते हैं।
कौन हैं जो इस महामारी के दौर में '' स्त्रियो '' के '' पुनर्स्थापन '' की जिम्मेदारी ले ,उन्हें
'' पुनर्स्थापित '' करने के लिए योजना और जवाब देहि से अपना कार्य करें।
इस पुरुषसत्तात्मक समाज के पास और उन सभी महानुभावो , जो प्रमुख सरकारों के पद पर विराजमान हैं। उनके पास इस सवाल और इस परिस्थिति पर जवाब देने के लिए कुछ नहीं हैं, और ये विषय उन्हें इतना जरूरी भी नहीं लगता हैं।
दुनियाँ की आधी आबादी महिलाओं की हैं और इस महामारी ने उनका सब कुछ '' छीन '' लिया हैं। ये एक ऐसी आपदा हैं, जो पुरुष प्रधान समाज में स्त्री के ''' सम्मान और रोजगार '' दोनों को निकाल गई हैं।
अभी ऐसा समय हैं , जो मानव हुकूमत पर पुरुष सत्ता का अधिकार और औरत के लिए पहले ही कम संसाधन थे और इस महामारी ने ओर सिमित या यूँ कहे ख़त्म ही कर दिए हैं।
पर कैसा भी समय हो देश में - कोई '' प्राकृतिक आपदा हो या युध्द '' का माहौल '' महिलाओं '' का '' तन और मन '' इसके हमेशा सबसे पहले '' ग्रास '' बने हैं। विश्व के जितने भी युध्द और आपदाएं या मुसीबतें हुई हैं , उन सब में पुरुषों का '' अहम और अहंकार '' हावी रहा हैं।
इसके विपरीत हमेशा महिलाओं ने शांति और सब्र का परिचय दिया हैं। महिला के सब्र ने कितनी ही मुसीबतों को अपने हौसले और हिम्मत से '' मात '' दी हैं , और देती रहेगी।
इस माहौल में हमेशा ये डर बना रहता हैं कि कहीं इस महामारी '' COVID -19 ''को भगवान के घर से आई आपदा कहकर '' पुरुष प्रधान '' समाज महिलाओं के '' हक '' की आवाज और रोज़गार दोनों को न खत्म कर दे।
इसलिए हम सभी को मिलकर एक साथ दुनियाँ की आधी आबादी '' स्त्रीशक्ति '' के हक़ और सम्मान को बचाए रखने के लिए साथ मिलकर आवाज उठानी होगी।
और स्त्री को अपने हक के लिए खुद ही सवेंदनशील होना होगा और ये सोचने पर मजबूर करना होगा की '' हम स्त्रियाँ '' भी अपना महत्व और सम्मान इस '' पुरुष प्रधान '' समाज में रखती हैं और बनाये रखने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहेगी।
हम सभी स्त्रियों को ,इस पुरुष प्रधान समाज पर दबाव बनाना होगा की , वो हमारी आवाज़ और रोजगार को हम से छीन न सकें।
'' तभी हम सही मायने में '' स्त्री '' होने का हक़ अदा कर पायेंगी। ''
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