💕💕 '' वर्तमान दौर में स्त्रीवाद से भयभीत समाज ''💕💕
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आधी से अधिक आबादी के मानव होने का अधिकार उसको [ स्त्री ] को हासिल हैं ,पर अब तक अस्मिता से अलग नहीं रहीं ,स्त्री लिंग की राजनितिक यहाँ सदियों से जो चलती आ रही हैं ,उसके बदले से लिंगातीत बराबरी की राजनीती में '' स्त्री '' विमर्श बदल गया हैं । उसके केंद्र में '' स्त्री '' की अस्मिता एवं अधिकार हैं।
पुरुष जहाँ अपना अधिकार जमाकर रखता हैं , वहाँ प्रवेश कर पुरुष को शत्रु के रूप में नहीं , उसके कंधे से कंधा मिलाकर जीवन को सुखद बनाने वाली '' इकाई या व्यक्तित्व '' के रूप में अपने को
'' प्रमाणित '' करना चाहती हैं।👩👸👸💞
💕💦 💋💋💋 '' यही हैं महान स्त्री '' 💕💋💋
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स्त्रीवाद :- स्त्रीवाद से वर्तमान समाज में अब अधिकतर '' स्त्री -पुरुष '' भयभीत हैं।
स्त्रीवाद से वर्तमान समाज ड़रने लगा हैं कि कहीं ये समाज '' 💕💥 स्त्रीसत्तात्मक 💥💖 '' हो गया तो क्या होगा।
स्त्रीवाद को हमेशा ही घर तोड़ने वाली समझा जाता हैं। स्त्री [महिला ] अगर '' 💟 स्वालंबिन 💟 ''
होने लगे तो वह घर बिगाड़ने वाली कहलाने लगती हैं। उस पर कई आरोप '' पुरुषसत्ता '' द्वारा लगायें जाते हैं।
स्त्रीवाद से अब भी वर्तमान समाज डरता हैं की कहीं वह ऐसी '' रूढ़िमुक्त '' [आजाद ] स्त्री को देखता हैं ,जिसे किसी भी बंधन ,नियम और दायरे में कैद नहीं किया जा सकता।
एक विचार से आजाद स्त्री की कल्पना से भी पुरुषो को सामाजिक नियम की संरचना टूटती व बिखरती नजर आती हैं।
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बंधनों से मुक्त स्त्री :- 💙💙💛💛💛💑
कोई स्त्री अगर सिर्फ अपने बारे में विचार करे तो ये '' पुरुषसत्तात्मक '' समाज उसको स्वीकार नहीं कर पाता। किसी ऐसी स्त्री जो स्त्रीवादी हो उसका नाम सुनते ही पुरुषों और समाज को वह स्त्री विलेन [ खलनायिका ] लगती हैं। वह महिला सिर्फ घर तोड़ने या बिगाड़ने का का काम करती हैं।
घर ,समाज व पुरुषों को सिर्फ एक ऐसी स्त्री [ महिला ] ही पसंद आती हैं जो अबला ,पुरुष आश्रित ,समर्पित ,त्यागशील ,प्रेम की प्रतिमूर्ति ,आज्ञाकारी ,कुछ न बोलने वाली ,सब सहने वाली ,हो वहीं महिलाएँ ही चाहिए।
पुराने समय से वर्तमान समय तक घर का बनना या बिगड़ने का सारा भार या जिम्मेदारी महिलाओं पर ही डाली जाती हैं। हमेशा महिला [माँ ,नानी ,दादी ] ही महिलाओं [ बहू ,बेटी ,] को ये समझाती रहती हैं की महिलाओं को अपना सारा ध्यान या अपनी सारी ऊर्जा घर को बनाने ,बचाने और बच्चों को संभालने में ही लगानी चाहिए।
बचपन से ही बेटी को सिखाया जाता हैं की अपना घर किसी भी हाल में बिगड़ने नहीं देना हैं। बड़े होकर जब बेटी दूसरे घर जाती हैं तो माँ ,दादी ,नानी ,व सभी बड़ों द्वारा कहाँ जाता हैं की अब वहीं तेरा घर हैं ,उस घर को किसी भी स्थति में बिगड़ने नहीं देना हैं ,चाहें इसके लिए कुछ भी करना या कितना ही कुछ सहना पड़े पर अपना '' धर्म '' नहीं छोड़ना हैं।
वे दादी ,नानी ,बड़ी बूढ़ी महिलाएँ ये भूल जाती हैं ,की इन घर व परिस्थितियों के नाम पर महिलाओं के साथ हो रहे मानसिक ,शारीरिक अत्याचार से उनकी आत्मा तक छिन्न हो जाती हैं। उस मानसिक पीड़ा से वे ही दादी ,नानी अपनी आँखे बंद कर लेती हैं और बेटी को समझाये जाती हैं की अपना घर बचाये रखने के लिए सब सहना पढ़ता हैं।
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पितृसत्ता :- 💞💞💞
पुरुषसत्ता ने हमेशा ही महिलाओं पर अपना नियंत्रण या अधिकार के लिए धर्म , संस्कृति , और समाज द्वारा बनाये गए नियम व परम्पराओं की '' दुहाई '' दी हैं। इन सब ने हमेशा ही '' स्त्री '' को घर व बंधनों में बांधे रखा हैं।
एक घर को बनाये रखने के लिए समाज ने '' स्त्री '' पर कुछ बंधन बनाये रखे हैं और घर का संचालन विशेषतः इन्ही सब बंधनो और नियमों पर निर्भर होता हैं।
समाज के बनाये ये नियम ही एक '' मनुष्य के अस्तित्व '' के निर्माण में योगदान देते हैं परन्तु समाज में ' ' स्त्री '' की हालत को बहुत ही दयनीय बना देती हैं।
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स्त्री के मायने :- 👸👸👸👸💙
स्त्रीवाद न किसी का घर बिखेरने और नहीं तोड़ने की तरफदारी करता हैं न रिश्ते -नातों को।
स्त्रीवाद एक समानताकारी समाज का सपना देखता हैं ,जहाँ पर महिलाओं को भी एक '' मनुष्य '' को मिलने वाली सभी '' नागरिक ,आर्थिक ,सामाजिक और अपने खुद के निर्णय की स्वतंत्रता '' के साथ जीने का अधिकार मिल सके। बस एक महिला समाज और घर से इतना ही चाहती हैं।
स्त्री सभी रिश्तों को जी -जान से निभती हैं। सभी के लिए वह स्त्री देवी का रूप होती हैं ,पर स्त्री एक ऐसे अपने घर का सपना संजोती हैं ,जहाँ उसे सिर्फ सारे रिश्ते निभाने वाली
'' महान माँ या महान देवी रूप '' नहीं समझा जाये।
उसे अपनी सहज व सरल मानवीय चाहतों को जीती हुई एक सामान्य मानव समझा जाये।
जिसे अपने अनुसार जीने ,खाने ,हसने ,नाचने ,घूमने -फिरने ,बात करने ऐसी और भी कई सारी
'' ख्वाहिशें '' हैं जो वह स्वयं के लिए कर सके,और सामान्य जीवन अपने लिए भी जी सके।
घर व रिश्तों के नाम पर उसे चार दीवारों में नहीं बांधा जाये।
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वह स्त्री जो रिश्तों और परम्पराओं की चार दीवार के अंदर चुन दी जाती हैं ,वह जब '' आजाद '' होना
चाहती हैं तो फिर वह घर की बंधनो की दीवारों को गिराकर आगे निकल जाने का निर्णय लेती हैं ,और खुद के लिए थोड़ा स्वार्थी हो जाती हैं ,फिर वहीं '' पुरुषसत्तात्मक '' समाज उसकी उसी ''ख़ुशी '' को सहन नहीं कर पाता हैं और तरह -तरह के आपेक्ष लगाता हैं।
कभी उसे उड़ने से रोकने के लिए उसके '' चरित्र '' पर उंगली उठता हैं। ये पुरुषसत्ता का सबसे बड़ा भावनात्मक हथियार हैं।
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इस पुरुषसत्तात्मक समाज का ठेका कुछ औरतों ने भी ले रखा हैं ,जो अच्छे या बुरे चरित्र का '' तमगा '' देती हैं। पुरुषों द्वारा '' Best Women '' का सर्टिफिकेट लेती हैं और समाज की ठेकेदार बन सब के चरित्र का आकलन करती रहती हैं।
जब तक महिलाओं में एक -दूसरे से ईर्ष्या ,द्वेश ,की भावना व पुरुषो द्वारा दिया गया
'' अच्छी व महान औरत '' का सर्टिफिकेट [ तमगा ] लेने की चाहत ,ख्वाहिश बनी रहेगी ,तब तक
'' स्त्रीवाद '' का लक्ष्य पूरा नहीं होगा व समाज में महिला का '' समान '' वर्चस्व नहीं होगा।
वर्तमान समय की आधुनिक महिलाओं को समझना होगा की समाज का चरित्र पर आपेक्ष लगाने का यह व्यवहार अब पुराना और घटिया हो चूका हैं।
अब जरूरत हैं कि महिलाएँ अपने सपने व इच्छा संकल्प की उड़ान के साथ अपने घर और बाहार की दुनियाँ में भी अपने आप को साबित कर आगे बड़े।
बाहार की सभी '' हथकड़ियों '' को तोड़ कर एक -दूसरे [स्त्री ] के साथ खड़ी रहें। हर महिला दूसरी महिला का सहारा बने और उसे भी खुले आकाश में उड़ान भरने दे।
महिलाएँ अपने सपने के घर बुनने में एक -दूसरे का भरोसा व सहारा बने और खुले आकाश में अपने सपनों की ऊंची उड़ान भरे और खुश रहे मस्त रहे।
👧👧 💞💞'' स्त्रीवाद न घर बिगाड़ने की बात करता हैं न रिश्ते - नातो को तोड़ने की।
स्त्रीवाद तो एक समान जीवन की बात करता हैं ,जहाँ स्त्री को अपने सपने ,अधिकार और स्वयं के निर्णय की आजादी मिल सके। ''💞💞💞👩👩👧👧
मैंने अपने ब्लॉग में महिलाओं को लेकर कई ''' लेख '' लिखें हैं। आपको मेरे द्वारा लिखें लेख पसंद आये तो आप इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को जरूर '' SHARE '' करें।
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