दक्षिण में आलवार बंधु नाम से कई भक्त हुए हैं। इनमें से कई तथा कथित निम्न जातियों के भी थे। वे बहुत पढे-लिखे नहीं थे, परंतु अनुभवी थे। आलवारों के पश्चात दक्षिण में आचार्यों की एक परंपरा चली जिसमें रामानुजाचार्य प्रमुख थे।
रामानुजाचार्य की परंपरा में रामानंद हुए। उनका व्यक्तित्व असाधारण था। वे उस समय के सबसे बड़े गुरु थे । उन्होंने भक्ति के क्षेत्र में ऊंच-नीच का भेद तोड़ दिया। सभी जातियों के व्यक्तियों को इन्होने अपना शिष्य बनाया था ।
- जाति-पांति पूछे नहिं कोई।
- हरि को भजै सो हरि का होई।।
- रामानंद ने भगवान विष्णु के अवतार राम की उपासना पर जोर दिया। रामानंद और उनके शिष्यो ने दक्षिण की भक्तिगंगा का उत्तर में प्रवाह किया। समस्त उत्तर-भारत इस पुण्य-प्रवाह की नदी में बहने लगा। भारत भर में उस समय पहुंचे हुए संत और महात्माओ सम्मान हुआ।
- सगुण भक्ति
- रामाश्रयी शाखा
- कृष्णाश्रयी शाखा
- निर्गुण भक्ति
- ज्ञानाश्रयी शाखा
- प्रेमाश्रयी शाखा
- कृष्णाश्रयी शाखा
. श्रीकृष्ण-साहित्य का मुख्य विषय कृष्ण की लीलाओं का गान है। इस शाखा में वात्सल्य एवं माधुर्य का भाव है। वात्सल्य भाव के अंतर्गत कृष्ण की बाल-लीलाओं, चेष्टाओं तथा माँ यशोदा के ह्रृदय की झाँकी मिलती है। माधुर्य भाव के अंतर्गत गोपीयों की लीला मुख्य है। सूरदास के बारे में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है- वात्सल्य के क्षेत्र में जितना अधिक सूर ने अपनी बंद आँखों से किया, इतना किसी ओर कवि ने नहीं किया । इस धारा के कवियों ने भगवान कृष्ण की उपासना माधुर्य भाव की है। इसीलिए इसमें मर्यादा का चित्रण नहीं मिलता।श्रीकृष्ण काव्य में मुक्त रचनाएँ ही अधिक पाई गई हैं। इस काव्य में गीति- की मनोहारिणी छटा हैं ।
- रामाश्रयी शाखा के अंतर्गत भगवान राम का गुण - गान हैं। रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि तुलसीदास ने मर्यादा-पुरुषोत्तम राम का ध्यान किया । इसलिए उन्होंने रामचंद्र को आराध्य माना और 'रामचरित मानस' द्वारा राम-कथा को घर-घर में पहुंचाया । तुलसीदास हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। तुलसीदास में लोकनायक के सब गुण मौजूद थे। इनकी पावन और मधुर वाणी ने जनता के तमाम स्तरों को राममय कर दिया। उस समय की प्रचलित तमाम भाषाओं और छंदों में इन्होने रामकथा लिखी।
- ज्ञानाश्रयी शाखा
इस शाखा के सभी कवि निर्गुणवादी हैं । वे गुरु को बहुत सम्मान देते हैं । जाति-पाँति के भेदों को अस्वीकार करते हैं । वैयक्तिक साधना पर बल देते हैं। मिथ्या आडंबरों और रूढियों का वे विरोध करते हैं
।
- प्रेमाश्रयी शाखा
सूफी कवियों की काव्य-धारा को प्रेममार्गी मार्ग माना गया है ,क्योंकि प्रेम से ईश्वर प्राप्त होता हैं ऐसी सूफी कवियों की सोच हैं । ईश्वर की तरह प्रेम भी सर्वव्यापी हैं, और ईश्वर का जीव के साथ प्रेम का संबंध है, यह उनकी रचनाओं का मूल तत्व है। सूफी कवियों ने कई प्रेमगाथाएं लिखी हैं। इन गाथाओं की भाषा अवधी है ,और इनमें दोहा चौपाई छंदों का प्रयोग हुआ है।
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