kartik purnima

                           
                          कार्तिक पूर्णिमा 

हिन्दू धर्म में कार्तिकपूर्णिमा का बहुत महत्व हैं। 

हिन्दू पंचाँग के महीनों के अनुसार आठवां महीना कार्तिक माह का होता हैं।  साल में कुल 12 पूर्णिमा होती है इनमें कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा  और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करके दीप दान और अन्न एवं वस्त्रो  का दान करना चाहिए। 
कहते हैं की इस दिन किया दान बहुत फल देता हैं। 



कार्तिक महीने की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के  नाम से जानते हैं।   यह व्रत हर साल  कार्तिक माह के   शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को आता हैं। 

व्रत विधि :-पूर्णिमा के दिन व्रत का संकल्प ले। पूरा दिन निराहार रहकर व्रत करे। गंगा नदी में स्नान करे ,वैसे गंगा नदी में नहीं कर सकते तो कोई भी नदी ,तालाब में ,सुबह भ्रह्म मुहर्त में स्नान कर सकते हैं। 

व्रत में सत्यनारायण भगवान की पूजा करे व कथा सुने। 
तुलसी जी के पौधें की पूजा व शाम को दीप जलाये। 
घर और आँगन में भी बहुत से दीप जलाये। 
अपनी इच्छा अनुसार दान -पुण्य करे। 
रात को चाँद को लोटे में जल और कच्चा दूध मिलाकर अर्ध्य दे। 
पीपल के पेड़ की भी पूजा करे ,जल चढ़ाये और रात को दीप जलाये ,

क्योकिं कहते हैं की कार्तिक पूर्णिमा के दिन पीपल के वृक्ष पर माँ लक्ष्मी निवास करती हैं ,जिससे हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त होता हैं। 




मत्स्य अवतार  
 भगवान विष्णु  ने धरती पर पहला अवतार मछली का लिया  था । धार्मिक मत के अनुसार भागवन विष्णु ने वेदों की सुरक्षा के लिए  मत्स्य रूप को धारण किया था। भगवन विष्णु का यह जन्म कार्तिकपूर्णिमा के दिन हुआ था। इस लिए भी ये पूर्णिमा बहुत महत्व पूर्ण हैं। 


त्रिपुरासुर अवतार 
कार्तिकपूर्णिमा के दिन भगवान शिवशंकर ने ,एक अजयअसुर त्रिपुरासुर को मारा था। इस असुर के मरने से धरती   पर धर्म की स्थापना हुइ थी, और इस  पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। 


कार्तिक पूर्णिमा  को देव दिवाली भी मानते हे ,इस दिन को बहुत शुभ मानते हैं। 


तुलसी विवाह
हिन्दू ग्रंथों के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवी तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ हुआ था और वे बैकुंठ में आई थी। इसलिए कार्तिकपूर्णिमा को माँ तुलसी की पूजा की जाती हैं। 
इस दिन से सारे शुभ और मांगलिक कार्यो का आरम्भ होता हैं। 



महाभारत
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत के युध्द के बाद पांच पांडवो को ये चिंता होने लगी की हमारे अपने  जो इस युद्ध मैं  प्राप्त हुए है उनकी आत्मा की शांति व् मुक्ति कैसे हो। पांडवो की इस चिंता को भगवान श्री कृष्ण ने देखकर कहा की कार्तिक पूर्णिमा को पितरो की आत्मा की शांती के लिए तर्पण व् दीपदान करे। आज भी  स्नान और पूजा की परंपरा चली आरही हैं। 




राधा जी की पूजा 
  कार्तिक  पूर्णिमा को राधा जी के दर्शन या पूजा करने से सभी बंधनो से मुक्ति मिल जाती हैं। अगर रोहिणी नक्षत्र होतो इस पूर्णिमा का महत्त्व कई गुना बढ़ जाता हैं। 
इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और बृहस्पति हो तो यह महा पूर्णिमा कहलाती हैं। 


गुरु नानकदेव 
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सिख धर्म के प्रथम गुरु,गुरु नानकदेव जी का अवतरण हुआ था। इस दिन को सिख धर्म मे प्रकाश पर्व के रूप में मानते हैं। सिख धर्म में इस दिन कई आयोजन किये जाते हे लोग धूम धाम से मनाते हे। 




शिव परिवार की ,कार्तिकेय की पूजा की जाती हे :-
 पंचतत्व से (घी ,शहद ,दही ,दूध ,गोमूत्र )से पूजन  किया जाता हे। 


कार्तिकपूर्णिमा को गंगा और बाकि सभी नदियों में दीप विसर्जन भी किया जाता हैं 







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