परिचय :-
छायावाद को 1918 से 1936 तक के कालखण्ड में प्रेम ,प्रकृति और मानव सौंदर्य की रहस्यपरक ,सूक्ष्म अभिव्यंजना ,स्वानुभूति जिस काव्य में थी। उसे ही छायावाद कहते हैं।
कुछ विद्वानों के अनुसार हम कह सकते हैं की छायावाद की समय सीमा 1920 -1936 तक मानी गई हैं। इस छायावाद काल में राष्ट्रीय सांस्कृतिकधारा काव्य भी रचा गया था।
छायावाद के नामकरण का श्रेय '' मुकुटधर पांडेय ''को दिया जाता हैं। इनकी '' कुररी के प्रति '' कविता छायावाद की प्रथम कविता मानी जाती हैं। इन्होने सर्वप्रथम 1920 ई.में जबलपुर से प्रकाशित ''श्रीशारदा ''पत्रिका में हिंदी में '' छायावाद '' नाम से चार निबंधों की लेखमाला प्रकाशित की थी।
द्विवेदी युग के पश्चात हिंदी साहित्य में जो कविता-धारा प्रवाहित हुई, वह छायावादी कविता के नाम से प्रसिद्ध हुई। वस्तुत: इस कालावधि में छायावाद इतनी प्रमुख प्रवृत्ति रही है कि सभी कवि इससे प्रभावित हुए और इसके नाम पर ही इस युग को छायावादी युग कहा जाने लगा।
छायावाद क्या है?
छायावाद के स्वरूप को समझने के लिए उस पृष्ठभूमि को समझ लेना आवश्यक है,जिसने उसे जन्म दिया। इससे पूर्व द्विवेदी युग में हिंदी कविता कोरी उपदेश मात्र बन गई थी। प्रकृति के माध्यम से जब मानव-भावनाओं का चित्रण होने लगा,तभी छायावाद का जन्म हुआ और कविता को छोड़कर कल्पना लोक में विचरण करने लगे।
परिभाषाएँ :
-छायावाद की अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं -
आचर्य हजारीप्रसाद द्विवेदी :-
छायावाद के मूल में पाश्चात्य रहस्यवादी भावना अवश्य थी।
जयशंकर प्रसाद :-
कविता के क्षेत्र में पौराणिक युग की किसी घटना या देश -विदेश की सुंदरता के बाहरी वर्णन से भिन्न जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमयी अभिव्यक्ति होने लगे तब हिंदी में उसे ''छायावाद '' के नाम से अभिहित किया जाता हैं।
आचर्य रामचंद्र शुक्ल :-
छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाना चाहिए 'एक रहस्यवाद के अर्थ में जहाँ उसका सम्बन्ध काव्य वस्तु से होता हैं और दूसरा प्रयोग शैली या पद्दति विशेष के व्यापक अर्थ में होता हैं।
डॉक्टर रामकुमार वर्मा :-
परमात्मा की छाया आत्मा में ,आत्मा की छाया परमात्मा में पड़ने लगती हैं ,तभी ''छायावाद '' की सृष्टि होती हैं।
महादेवी वर्मा :-
'' छायावाद तत्वतः प्रकृति के बीच जीवन का उद्गीत हे। उसका मूल दर्शन सर्वात्मवाद हैं।
भाव :-
छायावाद धारा की प्रवृतियों में ''आत्मबलिदान की भावना ,अतीत का गौरव गान ,आत्माभिमान और देशाभिमान ,पराधीनता और दमन के विरुद्ध संघर्ष ,उत्साह का अहिंसक रूप ,क्रांति का स्वर ,सांस्कृतिक चेतना का प्रसार ,राष्ट्रीय समस्याओ पर चिंतन ,मातृभूमि के प्रति आदर भाव व्याप्त हैं।
''छायावाद काव्यधारा के प्रमुख कवि:- प्रसाद ,पंत ,निराला ,और महादेवी वर्मा हैं। इन्हे छायावाद के चार स्तम्भ माना जाता हैं।
छायावाद शैली के सन्दर्भ में अमूर्त से मूर्त की तुलना करना ,मानवीकरण ,अलंकारों का महत्व ,सुन्दर शब्द चित्र ,भाषा में लक्षीणीकता का प्रयोग और छंदों में स्वच्छंता हैं।
कवि :-
मुकुटधर पांडेय , कमलेश ,सुभद्राकुमारी चौहान ,रामधारी सिंह दिनकर ,तरुण ,नीरज ,गोपालशरण सिंह ,माखनलाल चतुर्वेदी ,नरेंद्र शर्मा ,शिवमंगल सिंह ''सुमन '',रामेश्वरलाल ,आरसी प्रसाद सिंह ,रामनरेश त्रिपाठी ,बालकृष्ण शर्मा आदि।
छायावादी कविता की प्रवर्तियाँ :-
प्रकृति सौन्दर्य :- ''देख वसुधा का यौवन भार ,
गूँज उठता है जब मधुमास,
विधुर उर के से मृदु उद्गार,
कुसुम जब खुल पड़ते सोच्छवास ,
न जाने सौरभ के मिस कौन ,
संदेश मुझे भेजता मौन। [ सुमित्रानंदन पंत ]
प्रेम भावना :- दोनों हम भिन्न वर्ण, भिन्न जाती ,भिन्न रूप, भिन्न धर्म भाव ,पर -केवल अपनत्व से ,प्राणों से एक थे। [ प्रेयसी -अनामिका -निराला ]
नारी सौंदर्य , नारी का उदात्त रूप , राष्ट्रीयता और देशप्रेम , विचारगत प्रवर्तियाँ , शृंगारिकता , अलौकिक रूप , प्रेम और रहस्यवाद , जीवन और निराशा , वेदना की अभिव्यक्ति , कल्पना की अतिशयता , भावात्मकता , मानवतावादी दृष्टिकोण।
छायावाद युग :- भारतेंदु काल [पूर्व पीठिका ]के राधाचरण गोस्वामी [हमरो उत्तम भारत देश ]ऐसी ही देशभक्ति कविताओं सृष्टि करते थे।
इस काल में तीन प्रकार की काव्य धाराएँ - प्रथम छायावाद काव्य धारा ,दूसरा राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा ,तीसरा प्रणय काव्यधारा।
कवि :-
1. जयशंकर प्रसाद :-[1889 से 1937 काशी ]
इनकी प्रमुख कविताएँ
--उर्वशी [1909 ], झरना [1918 ],
आँसू [1925 ] ,लहर [1933 ], कामायनी [1935 ], प्रेम पथिक [1913 ],कानन कुसुम [1913 ],आदि इनकी छायावादी रचनाएँ हैं।
2 . महादेवी वर्मा :- [1907 से 1987 उत्तरप्रदेश ]
रचनाएँ :-
ये पहले बृज भाषा में लिखती थी बाद में खड़ी बोली में लिखने लगी।
नीहार [1930 ], रश्मि [1932 ], यामा [1940 ], यामा पर 1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था।
3 . सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला :- इनका जीवन अभावों व विपत्तियों से पीड़ित रहा।
रचनाएँ :-
'' राम की शक्ति पूजा '' नामक लम्बी कविता "अनामिका " में संकलित है
अनामिका (1923) ,परिमल (1930),गीतिका(1936 ),तुसलीदास(1938 )इनकी छायावादी रचनाएँ है।
4 . सुमित्रानंदन पंत :- [1900 से 1977 कौसानी ,अलमोड़ा उत्तरप्रदेश ]
रचनाएँ :-
पंत प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं कोमल कल्पना के लिए प्रसिद्ध हैं।
चिदंबरा (1969)ई.वी मे भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ ,उच्छवास (1920 ),ग्रंथि[1920] ,विणा [1927],पल्लव [1928]
पंत के काव्य का विकास चार युगो [छयावाद,प्रगतिवाद,अंतश्चेतनावदी , नवमानवतावादी ]में हुआ।
5. माखनलाल चतुर्वेदी [1889 से 1968 ]
हिमकिरीटिनी ,हिमतरगिनी, पुष्प की अभीलाश
6. सुभद्राकुमारी चौहान :-[1905 से 1948 ]
"झांसी की रानी "कविता को प्रसिद्धि मिली ,त्रिधारा ,मुकुल
7. रामधारी सिंह दिनकर :-[1908 से 1974 ]
रेणुका ,कुरुक्षेत्र ,परशुराम की प्रतीक्षा ,रश्मिरथी।
8. बालकृष्ण शर्मा नविन ,हरिवंशराय बच्चन ,सियरामशरणगुप्त ,रामनरेश त्रिपाठी।
0 टिप्पणियाँ
For more query please comment