HINDI SAHITYA KA RITIKAL

                       

     ''रीतिकाल को उतर  मध्यकाल भी कहा गया हैं। ''


                                 ''रीतिकाल ''
रीतिकाल का अर्थ काव्यांग निरूपण हैं।  

परिचय :- सम्वत १७०० से १९०० वी.सं.तक आचर्य शुक्ल के अनुसार मानी जाती हैं। इस काल में रस ,गुण ,अलंकार और नायिका भेद आदि काव्यांगों के विवेचन करते हुए ,व लक्षण बताते हुए रचे गए काव्य की प्रधानता के कारण इस काल को रीतिकाल नाम दिया गया। 
१७०० इ.में हिंदी कविता में नया मोड़ आया। हिंदी में रीती का शब्द प्रयोग काव्यशास्त्र  लिए हुआ। 
रीती काल के कवि ऐसे थे जो गुरु और काव्यांगों के लक्षण ग्रन्थ भी लिखते थे। 
रीतिकाल में श्रृंगाररस की प्रधानता थी।  रीतिकाल में प्रमुखता =कवित्त ,सवैये ,दोहे,लिखे गए। 


रीतिकाल का आरम्भ आचर्य केशव दास ने किया था ,जिनकी प्रसिद्द रचनाएँ :-कविप्रिया ,रसिकप्रिया ,और रामचंद्रिका हैं। इनकी रचनाओं में अलंकार और रस का समावेश हैं। 

आचर्य रामचंद्र शुक्ल रीतिकाल की शुरुवात केसवदास से नहीं मानकर चिंतामणि से मानते हैं। शुक्ल जी का मानना था की केशवदास ने काव्य के सब अंगों का निर्माण शास्त्रिय पद्द्ति से किया हैं। 


रीतिकाल के कवि दरबारी थे :- केशवदास ,प्रतापसिंह ,बिहारी ,मतिराम ,भूषण ,चिंतामणि ,देव ,भीखारीदास ,ग्वाला ,बेनी,रतन। 
अनेक कवि तो खुद राजा थे। जैसे -महाराजा जसवंतसिंह। 


रीतिकाल की प्रवृति विश्लेषण :-

राजनीतिक परिस्थियाँ :-

१ आचर्य शुक्ल के अनुसार रीतिकाल के अंतर्गत पूरी दो शताब्दियाँ  आती हैं। 
२ राजनितिक दृष्टि से ये काल मुग़ल शासन के वैभव  चरमोत्कृष्ठ पर था। और उत्तरोत्तर पतन व विनाश का युग था। 
३ १७०० में भारत में शाहजहाँ का वैभव चरम सीमा  पर था। 
४ १७१५ में शाहजहाँ की बीमारी और मृत्यु की अफवाह ने उत्तराधिकार का संघर्ष ,राजनितिक उथल-पुथल को दर्शाता हैं। 
५ ओरंगजेब कठोर असहिष्णु व दृढ़ था और सुन्नी था। 
                         

सामाजिक अवस्था :-

उत्पादक वर्ग और उपभोक्ता वर्ग के अतिरिक्त तीसरा वर्ग कवियों ,कलावंतों का था। 
दोनों वर्ग शोषित और शोषक के रूप में थे। शोषक वर्ग को बिना मेहनत सुख सुविधाएँ प्राप्त थी तो शोषित वर्ग मेहनत के बदले भी तकलीफ ही मिलती। 
                                

मुग़ल शासक होने के कारण रीतिकाल के शुरू से ही हिन्दुओं पर अत्याचार ,मंदिरों में तोड़ फोड़ ,पाठशालों ,पुस्तकालयों को नष्ट करना आदि कार्य होते रहते थे। 


सांस्कृतिक परिस्थियाँ :-

अकबर ,जहाँगीर के बाद शाहजहाँ की उदारवादी नीति और संतों ,सूफियों के उपदेशों से हिन्दू  - इस्लाम की सांस्कृतिक निकटता हुई जो ओरंगजेब की कट्ठरता के कारण ख़त्म हो गई। 


साहित्य  और कलाओं :-
इस काल के कवि कलाकार साधरण वर्ग के थे। लेकिन उनके आश्रयदाताओं और देशी राजाओं से प्राप्त सम्मान व दौलत से उनकी गणना प्रतिष्ठित लोगों में थी। 
गुणों से पूर्ण होते हुए भी ये कवि आश्रयदाता की पसंद का विशेष ख्याल रखते थे। जिससे सृजन का उत्तमोत्तर रूप काव्य में नहीं आ सका। 
                     

रीतिकाल की प्रवृतिया :-
केशवदास ने सभी काव्यांगों का निरूपण सर्वप्रथम शास्त्रीय पद्द्ति पर किया। केशवदास रीतिकाल के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं। 
1   रीतिकाल के सभी कवि राज्याश्रित होते थे इसलिए वे आश्रयदाताओं की रूचि के अनुसार काव्य की रचना करते और अपनी स्वयं की प्रतिभा नहीं होती थी। 

2   रीतिकाल में भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष की प्रमुखता थी और ज्यादातर कवि अलंकारवादी थे। 
3   श्रंगार वर्णन में कवियों का मन अधिक रमता था। 
4   डॉक्टर भागीरथ मिश्र के अनुसार -श्रंगार के प्रति कवियों का दृश्टिकोण भोगपरक था। 
5  दरबारी कवि राधा -कृष्ण वर्णन में श्रंगारिकता का वर्णन करते थे। 



नाम :-
रीतिकाल का नामकरण शुक्ल जी का दिया हैं। 
मिश्रबन्धु ने ऐसे उत्तरालंकृत काल कहा हैं। 
विश्वनाथ प्रसाद ने श्रृंगार काल कहा हैं। 
भागीरथ मिश्र ने रीती शृंगार युग नाम दिया हैं। 

मुख्य काव्य धाराएँ :-
रीतिकाल को तीन वर्गों में बाटा गया हैं -1     रीतिबद्ध काव्य 
                                                               2     रीतिसिद्ध काव्य 
                                                                3    रीतिमुक्त काव्य 


रीतिबद्ध व रीतिमुक्त काव्य धारा आचार्य शुक्ल ने विभाजित की हैं ,रीतिसिद्ध काव्यधारा आचर्य विश्वनाथ द्वारा विभाजित हैं। 
जिन कवियों ने लक्षण ग्रंथों की परिपाटी पर काव्यांगों का लक्षण और उदाहरण देते हुए रीती ग्रंथों की रचना की वे रीतिबद्ध कवि कहलाये। 
और जो कवि रीती के बंधन से पूर्णतः मुक्त थे वे रीतिमुक्त कहलाये। 

रीतिबद्ध कवि :-
केशवदास ,[काव्य का प्रेत ],चिंतामणि त्रिपाठी, कुलपति मिश्र ,कुमारमणि ,देव , सोमनाथ भिखारीदास। 


रीतिसिद्ध कवि :-
सेनापति ,नृपशंभु ,वृंद ,बिहारी 

बिहारी सतसई 
में संयोग -वियोग श्रृंगार के अतिरिक्त भक्ति ,निति के दोहे भी हैं। 


रीतिमुक्त कवि :-
घनानंद ,आलम ,बोधा ,ठाकुर ,मंडन आदि। 


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