''💕महिला की आजादी का दूसरा पहलू 💕 ''
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आज के दौर में हर कोई '' महिला '' की आजादी व स्वतंत्रता की बात करता हैं। हर महिला ये चाहती हैं कि वो '' खुल '' कर '' जियें '',उस पर कोई रोक - टोक या बंदिशे न हो।
हर कार्य वो अपनी मन -मर्जी से करें।
पुराने समय में भी महिला आजादी के लिए कई '' आंदोलन व संघर्ष '' हुए और आज भी कई
'' महिला - उन्मूलन '' के कार्यक्रम होते रहते हैं। और हाँ कुछ हद तक ये कार्यक्रम सही भी हैं ,पर क्या वास्तव में '' महिला को पूर्ण आजादी '' सही हैं?
ये सोचने की बात हैं। '' महिलाओ की स्वतंत्रता '' को लेकर आज जो आजादी की '' लड़ाई '' लड़ी जा रही हैं क्या वो सभी महिलाओ के लिए एक समान हैं ,या कुछ महिलाओ को सिर्फ
'' अपनी जिम्मेदारियों '' से मुक्ति की आजादी हैं।
हम सभी आजादी -आजादी चिल्लाते हैं, पर समाज में संतुलन बनाये रखने के लिए सभी वर्ग को अपनी -अपनी जिम्मेद्दारी निभानी पड़ती हैं।
आज के दौर की बात करें तो '' महिला आजादी '' आंदोलन तीन भागों में बट गया हैं।
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एक वे '' महिलाएँ '' हैं ,जो वास्तव में '' महिला के जीवन '' में '' शिक्षा '' की '' जोत '' जगाकर उसके जीवन को
'' आजादी '' ,खुद की सोच देना चाहती हैं ,उस '' महिला वर्ग '' को समाज में '' उचित दर्जा देकर
'' मान -सम्मान '' की लड़ाई लड़ती हैं।
इस महिला वर्ग ने '' शिक्षा '' का जीवन में ''' महत्व '' समझा और अपने आप को
''' स्वावलम्बी '' होने का महत्व समझा और '' समाज '' में अपने लिए '' इज्जत , मान -सम्मान''
हासिल करने के लिए '' अथाह '' प्रयास किये और खुद का जीवन तो गर्व से '' जिया '' और ओरो को भी '' गर्व से जीना '' सिखाया।
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वे वास्तव में उन '' महिलाओ की सच्ची आजादी '' चाहती हैं ,जो हमेशा '' समाज '' ने उन्हें दबाये रखा और खुल कर जीने नहीं दिया।
इस वर्ग ने खुद के व समाज की उन '' महिलाओं '' के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा को जगाया और उसे हासिल भी किया और सच्चे अर्थ में आजादी पाई।
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दूसरा वो वर्ग ''' महिलाओ '' का हैं ,जो इस '' पुरुषसत्तात्मक '' समाज की '' जंजीरों '' में जकड़ा हुआ हैं। उस महिला को '' पुरुषसत्तात्मक '' के आगे चलने की इजाज़त नहीं।
न अपने मन से कुछ कर सकती हैं ,नहीं कुछ करने की इजाज़त हैं। ये वो महिला वर्ग हैं जो '' चाह '' कर भी न अपने लिए बोल सकता हैं ,न अपनी '' बेटी ,बहू '' के लिए।
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ये '' स्त्री '' वर्ग वो हैं ,जो '' पुरुषसत्तात्मक '' समाज के नियम , परम्परा के आगे '' बेबस '' हैं।
वह ''' महिला '' अपनी '' बेटी '' को न कुछ बना सकती हैं, न ऊंची '' शिक्षा ''' दे सकती हैं ,न अपनी '' बहू '' को अपने घर की चार दीवार की '' दहलीज़ '' पार कर सकती हैं ,बस '' बेबस '' सी इस समाज का '' हिस्सा '' बने हुए हैं।
इसके आगे की बात अगले अंक में ..... ..... ..
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नए वर्ष की शुभ -कामनाएँ।
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